प्रेम की प्यासी
- By Test User
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मेरा गोरा रंग, बोलती आंखें, कंधों तक बलखाते बाल, चौड़ी छाती, पतली कमर और चिकनी सुडौल जांघे सभी को लुभाती थी। पुरुष मेरे सौंदर्य को देखकर कहते-‘यह लड़की तो किसी रसगुल्ले से कम मुलायम और रसदार नहीं है। इसे देखने मात्र से ही जन्नत की सैर हो जाती है।’
मैं सुन्दर थी। मेरी देह-यष्टि आकर्षक थी। मैं पुरुषों के मुंह से ऐसे शब्द सुनते ही नारी स्वाभाववश खिल जाती और मुझे अपनी खूबसूरती का बरबस ही आभास होने लगता। मैं बुदबुदाए बिना न रह पाती-‘मुझ पर तुम सब मरते हो तो मरो, मैं किसी के हाथ नहीं आने वाली… मैं तो आग हूं, आग। मुझे पकड़ने के लिए पानी बनना होगा। मैं सुन्दर हूं, पर इतनी भोली नहीं हूं कि अपनी प्रशंसा सुनते ही तुम्हारी बाहों में समा जाऊंगी।’
मैं अभी सोच ही रही थी, कि मां की आवाज ने मुझे चौंका दिया। मैं जैसे सोते से जाग उठी। मां मेरे सामने खड़ी मुस्करा रही थी। मेरी मां मुझसे कहीं अधिक खूबसूरत थी। वह एक प्रौढ़ महिला थी, लेकिन देखने में इक्कीस-बाइस की ही लगती थी। वह अपने सौंदर्य और स्वास्थ्य के प्रति हरदम सजग रहती थी।
वह अपने मुंह से कुछ कहती तो नहीं थी, किन्तु उसके मन के भाव से अक्सर ही मुझे लगता कि वह वेदान्त अंकल को पसन्द करती है और पापा उसके अनुकूल नहीं हैं। वेदान्त अंकल कहां से आते थे और मम्मी से उनका संबंध कब से था, इससे मेरा कोई मतलब नहीं था।
इतने में मम्मी चहकती हुई बोली-‘बेटी, तुम आज स्कूल नहीं गई?’ ‘आज तो छुट्टी है।’ मैंने यह कहकर मम्मी की ओर देखा। आज उसने गुलाबी साड़ी बांध रखी थी। मम्मी पर गुलाबी कपड़े बहुत ही खिलते थे। उसका रूप उनमें और अधिक दमक उठता था। मुझे जहां तक मालूम था, मम्मी सजती-संवरती तभी थी, जब वेदान्त अंकल घर पर होते थे या आने वाले होते थे।
वैसे तो सजना-संवरना मम्मी के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा था। लेकिन उस दिन वह विशेष रूप से साज-श्रृंगार करती थी, जब वेदान्त अंकल घर पर होते। मैं अचानक ही बोल पड़ी तो वेदान्त अंकल आज आने वाले हैं?’ मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि मम्मी पापा के लिए क्यों नहीं सजती-संवरती है? शायद मां के सपनों के राजकुमार पापा नहीं हैं, वेदान्त अंकल ही हैं।
वैसे यह कड़वा सच भी है। वेदान्त अंकल पापा से अधिक सुन्दर और स्मार्ट हैं। अपने आप को हमेशा ही सुन्दर बनाकर रखते हैं। कपड़े ढंग के पहनते हैं और पापा, पापा तो बिलकुल ही ढीले-ढाले व्यक्ति हैं। एक ही कपड़े को दो-दो रोज तक पहने रहते हैं। शेव तभी बनाते हैं, जब खुजली होने लगती है या उन्हें कोई टोक देता है। मां को तो चुस्त और खूबसूरत पुरुष चाहिए। वेदान्त अंकल चुस्त भी हैं और सुन्दर भी हैं।’
इसी बीच मां ने मुझे टोक दिया-‘यह लड़की तो हमेशा ही कुछ-न-कुछ सोचती ही रहती है। जा, अपनी सहेली माधुरी से मिल आ। वह तुम्हें कल याद कर रही थी।’
मैं अवाक रह गई-‘मां, मुझ पर आज इतनी मेहरबान क्यों है? अचानक ही मुझे माधुरी के घर क्यों भेजने लगी? आखिर माजरा क्या है?’ एक साथ मेरे मस्तिष्क में न जाने कितने ही सवाल उमड़ने-घुमड़ने लगे, लेकिन मुझमें यह पूछने की हिम्मत ही नहीं थी, कि तुम मुझे जबर्दस्ती माधुरी के घर क्यों भेज रही हो? आखिर तुम्हारा इसमें क्या स्वार्थ है? खैर माधुरी से मिलने के लिए तो बेताब मैं भी थी। मैं पैदल ही उसके घर चल दी।